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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (1885 – 1917) | Indian National Movement (1885 – 1917)

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (1885 – 1917): भारतीय इतिहास की इस पोस्ट में 1885 से 1917 ई. तक के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों से संबंधित नोट्स एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहद ही उपयोगी है, Indian National Movement (1885 – 1917), Bhartiya Rashtriya Andolan

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (1885 – 1917)

◆ भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय आंदोलनों की शुरुआत 1885 में कांग्रेस की स्थापना से मानी जाती है।
◆ भारत में राष्ट्रवादी विचारधाराओं को जन्म देने के लिए कांग्रेस का सबसे बड़ा योगदान था इसके अलावा पाश्चात्य शिक्षा का भारत में विस्तार होना। सरकारी नौकरियों में भारतीयों को शामिल करना। ब्रिटिश प्रशासन की आर्थिक नीतियां स्थानीय शासन कमेठीयों की स्थापना आदि कई कारण थे जिन्होंने भारतीय जनता में राष्ट्रवादी विचारधाराओं को जन्म दिया।
◆ 1885 के पश्चात स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलनों को तीन चरणों में विभक्त किया गया है।
(1) उदारवाद – 1885 से 1905 ई.
(2) उग्रवाद / राष्ट्रवाद का उदय – 1905 से 1917 ई.
(3) गांधीयुग – 1917 से 1947 ई.

(1) उदारवाद – 1885 से 1905 ई.

◆ 1885 से 1905 के मध्य उदारवादी नेता दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, मदनमोहन मालवीय, गोपाल कृष्ण गोखले, बदरुद्दीन तैयबजी, दिनेश वाचा आदि का प्रभुत्व रहा। इस दौरान ही कांग्रेस की स्थापना हुई थी।
◆ एक सेवानिवृत अंग्रेज अधिकारी ए. ओ. ह्यूम के द्वारा इंडियन नेशनल यूनियन की स्थापना की गई। जिसका प्रथम अधिवेशन बम्बई में 28 दिसम्बर 1885 ई. को आयोजित किया गया तथा इसके अध्यक्ष W.C. बनर्जी बने। इसी अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी के सुझाव पर इंडियन नेशनल यूनियन का नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस रखा गया। (Indian National Movement 1885 – 1917)
◆ कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों द्वारा एक ‘सुरक्षा वॉल्व’ के रूप में की गई थी। इसका दूसरा अधिवेशन 1886 ई. में कलकत्ता में हुआ। जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की जो कांग्रेस के प्रथम पारसी अध्यक्ष बने। 1887 ई. में मद्रास में तीसरा अधिवेशन आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता बदरुद्दीन तैयबजी ने की जो कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बने।
◆ 1888 ई. में चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ जिसकी अध्यक्षता जार्ज मूल द्वारा की गई, जो कांग्रेस के प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष बना।
◆ 1888 के पश्चात कांग्रेस को सरकार का सहयोग मिलना समाप्त हुआ, परन्तु कांग्रेस अनुनय-विनय की संस्था ही बनकर रही।
◆ लार्ड डफरिन – “कांग्रेस उस अल्पसंख्यक वर्ग का समूह है जिसका क्षेत्र सूक्ष्म है।”
◆ लाला लाजपतराय ने 1916 ई. में यंग इंडिया के लेख में कांग्रेस को “डफरिन के दिमाग की उपज कहा है।”
◆ लार्ड कर्जन – “कांग्रेस के पैर डगमगा रहे है। इसका पतन निश्चित है। यहां रहते हुए मेरी यह अभिलाषा है कि मैं शांतिपूर्ण रूप से इसका पतन देखूं।”
◆ बंकिमचन्द्र छत्रजीने कांग्रेस के सदस्यों को पदों का लोभी कहा है।
◆ लार्ड डफरिन ने ए. ओ. ह्यूम को अनुभवहीन, पागल व अविश्वासी कहा है परंतु लाला लाजपतराय ने ह्यूम के ह्रदय में स्वतंत्रता की भावना होना बताया है।

(2) राष्ट्रवाद का उदय – 1905 से 1917 ई.

◆ कांग्रेस की उदारवाद की नीति से युवा वर्ग में असंतोष था। स्वामी विवेकानंद (कमजोरी पाप है, कमजोरी मृत्यु है), स्वामी दयानंद सरस्वती (स्वराज) तिलक जैसे समाज सुधारकों द्वारा राष्ट्रवाद का प्रचार युवावर्ग द्वारा विदेशी घटनाओं से प्रभावित होना, बंगाल का विभाजन आदि कारणों से राष्ट्रवाद का उदय हुआ। (Indian National Movement 1885 – 1917)
◆ लार्ड कर्जन द्वारा 19 जुलाई 1905 ई. को बंगाल विभाजन की घोषणा की गई।
(i) पूर्वी बंगाल – राजधानी – ढाका (ढाका, चटगाँव, राजनगर, असम)
(ii) पश्चिमी बंगाल – राजधानी – कलकत्ता (पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा)
◆ अंग्रेजों द्वारा बंगाल का विभाजन धार्मिक आधार पर राष्ट्रीयता की भावना को कुचलने के लिए किया गया था।
◆ 7 अगस्त 1905 ई. में कलकत्ता के टाऊन हॉल में SN बनर्जी की अध्यक्षता में सभा हुई जिसमें विभाजन के बहिष्कार का निर्णय लिया गया था।
◆ सर्वप्रथम बहिष्कार का उल्लेख 13 जुलाई 1905 ई. में संजीवनी समाचार में किया गया था।
◆ 16 अक्टूबर 1905 ई. को बंगाल का विभाजन हुआ। इस दिन सम्पूर्ण बंगालवासियों ने काला दिवस के रूप में मनाया।
◆ टैगोर ने इस दिन को रक्षाबंधन के रूप में मनाने का आह्वान किया।
◆ दिसम्बर 1905 ई. को गोखले की अध्यक्षता में कांग्रेस का बनारस अधिवेशन हुआ, जिसमें बंगाल में स्वदेशी आन्दोलनों का प्रस्ताव पारित किया गया।
◆ बंगाल का यह स्वदेशी आन्दोलन चरम पर पहुंचा तथा अन्य प्रान्तों में भी (महाराष्ट्र, पंजाब) बंगाल विभाजन के विरुद्ध यह आन्दोलन फैला।
◆ उग्रवादी नेता इस आन्दोलन को सम्पूर्ण भारत में फैलाना चाहते थे, परन्तु उदारवादी इसके पक्ष में नहीं थे। इसी कारण दोनों में मतभेद प्रारम्भ हुआ।
◆ 1906 ई. के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की, जिसमें उग्रवादियों द्वारा स्वराज, बहिष्कार, शिक्षा, स्वदेशी का प्रस्ताव पारित करवाया गया। इस अधिवेशन में ही कांग्रेस द्वारा सर्वप्रथम स्वराज का लक्ष्य रखा गया था।
◆ 1907 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना था परन्तु उदारवादियों द्वारा इसका आयोजन सूरत में किया गया, जिस कारण तिलक इसकी अध्यक्षता नहीं कर सके।
◆ रास बिहारी बोस द्वारा इसकी अध्यक्षता की गई तथा इसी अधिवेशन में अत्यधिक मतभेद हो जाने के कारण कांग्रेस का गरम दल व नरम दल में विभाजन हुआ।
◆ ढाका के नवाब सल्लीमुल्ला खां द्वारा शिमला में लार्ड मिण्टो से मिलकर पृथक निर्वाचन की मांग की गई तथा इसके उपरान्त ही 30 दिसम्बर 1906 ई. में ढाका में एक मुस्लिम सभा बुलाई गई तथा इसमें सल्लीमुल्ला खां द्वारा “अखिल भारतीय मुस्लिम लीग” की स्थापना की गई।
◆ मुस्लिम लीग का प्रथम अध्यक्ष वक्कार मुल्क बना परन्तु 1908 ई.में आगा खां लीग के स्थायी अध्यक्ष नियुक्त किये गए।

भारत शासन अधिनियम (1909)

◆ वायसराय लार्ड मिण्टो व भारत सचिव लार्ड मार्ले के प्रयासों से यह एक्ट पारित हुआ जिसे मार्ले-मिण्टो सुधार एक्ट भी कहा जाता है।
◆ इसी एक्ट के तहत भारत में पृथक निर्वाचन प्रणाली का प्रारम्भ हुआ। मुसलमानों को पृथक निर्वाचन क्षेत्र प्रदान किया गया तथा यही एक्ट भारत के भावी विभाजन का कारण बना।

क्रांतिकारी राष्ट्रवाद

◆ कांग्रेस की उदारवादी नीति के कारण युवाओं में क्रांति के विचार पनपना शुरू हुए। तिलक के द्वारा “अनुनय विनय नहीं बल्कि युयुत्सा” के नारे ने क्रांतिकारियों द्वारा हथियार उठाने में प्रेरणा का कार्य किया।
◆ भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का फैलाव महाराष्ट, बंगाल, पंजाब व मद्रास में रहा।
◆ क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का उदय महाराष्ट्र से माना जाता है। महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के द्वारा इसकी शुरुआत की गई।
◆ 1896 ई. में चापेकर बन्धुओं (दामोदर और बालकृष्ण) द्वारा व्यायाम मण्डल की स्थापना की गई। इन्हीं चापेकर बन्धुओं ने प्लेग कमीशन के अमानवीय व्यवहार से क्षुब्ध होकर 1897 ई. में रैण्ड तथा एयस्र्ट की हत्या कर दी।
◆ यह क्रांतिकारी आन्दोलन की प्रथम घटना मानी जाती है। 1898 ई. में चापेकर बन्धुओं को फांसी दे दी गई।
◆ 1899 ई. में वी.डी. सावरकर ने मित्र-मेला संस्था की स्थापना की, जिसका नाम 1904 ई. में ‘अभिनव भारत’ संस्था कर दिया गया।
◆ इसी संस्था की स्थापना 1906 में लन्दन में की गई तथा वहां से भारत में क्रांति हेतु हथियार भेजे जाते।
◆ अभिनव भारत संस्था के सदस्य अनंत लक्ष्मणकन्हारे द्वारा 1909 में नासिक के मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या कर दी गई, यही केस नासिक षड्यंत्र केस के नाम से जाना जाता है। (Indian National Movement 1885 – 1917)
◆ इस केस के तहत कनहारे को फांसी दे दी गई तथा सावरकर को बंदी बनाकर काला पानी की सजा सुनाई गई।
◆ बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा फैलाने का श्रेय घोष बंधुओं (अरविंद घोष और बारीन्द्र घोष) को जाता है। इन्हीं के द्वारा 1906 ई. में युगांतर समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया गया था। जिसके माध्यम से क्रांतिकारी विचारधारा का प्रचार प्रारंभ हुआ।
◆ युगांतर में ही यह प्रकाशित किया गया था कि 30 करोड़ भारतीय अपने 60 करोड़ हाथों को उठाकर अंग्रेजों का सामना करें, बल को बल से ही दबाया जा सकता है।
◆ 1908 ईस्वी में प्रफुल्ल चाकी व खुदीराम बोस के द्वारा मुजफ्फरपुर के न्यायाधीश किंग्सफोर्ड की हत्या कर दी गई, यही षडयंत्र मुजफ्फरपुर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। प्रफुल्ल चाकी द्वारा आत्महत्या कर ली गई तथा खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई, जो फांसी पर चढ़ने वाले सबसे युवा भारतीय थे।
◆ 1908 ई. में पुलिस द्वारा अलीपुर के बम कारखाने पर छापा मारा गया, जिसे अलीपुर षड्यंत्र केस के नाम से जाना जाता है। इसके तहत 34 क्रांतिकारियों के साथ घोष बंधुओं को बंदी बनाया गया। अरविंद घोष के विरुद्ध साक्ष्य न मिलने के कारण इन्हें मुक्त कर दिया गया परंतु बारीन्द्र घोष को फांसी की सजा सुना दी गई।
◆ पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन का कारण अंग्रेजों द्वारा किया गया शोषण, अत्यधिक लगान, अकाल, भुखमरी रहा।
◆ यहां सर्वप्रथम जतिन मोहन चटर्जी द्वारा 1904 में भारत सोसायटी की स्थापना की गई। जिसके प्रमुख सदस्य लाला लाजपत राय, परमानंद, लाला हरदयाल आदि थे। इसी के द्वारा 1905 ई. में बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन भी चलाया गया।
◆ मद्रास में नीलकंठ ब्रह्मचारी व वंचि अय्यर द्वारा 1907 ई. में भारत माता समिति की स्थापना की गई जिसके माध्यम से मद्रास में क्रांतिकारी गतिविधियां आरम्भ हुई।
◆ वंची अय्यर के द्वारा 1911 में वेल्लीवल्ली के जिला न्यायाधीश लार्ड आशे की हत्या कर दी गई तथा स्वयं ने आत्महत्या कर ली।
◆ 12 दिसंबर 1911 ईस्वी को जॉर्ज पंचम व उसकी पत्नी मेरी के स्वागत में दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। इसी दिल्ली दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द किया गया तथा भारत की राजधानी दिल्ली स्थापित करने का निर्णय हुआ।
◆ 1 अप्रैल 1912 ईस्वी को दिल्ली राजधानी बनाई गई। इस दौरान ही लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंक कर उसे मारने का प्रयास किया गया। लॉर्ड हार्डिंग पर यह बम की योजना रासबिहारी बोस द्वारा बनाई गई। यह घटना दिल्ली षडयंत्र केस के नाम से जानी जाती है।
◆ दिल्ली षडयंत्र केस के अंतर्गत अमीरचंद्र, बसंत कुमार, लाला मुकुंद, अवध बिहारी का नाम आता है।

विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियां

◆ विदेशों में सर्वप्रथम श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रारंभ किया गया। इन्होंने 1905 ईस्वी में लंदन में इंडियन होमरूल सोसाइटी की स्थापना की। इस सोसायटी के द्वारा ही इंडियन सोशलिजिस्ट समाचार पत्र निकाला गया तथा इंडियन हाउस की स्थापना की गई।
◆ मदनलाल ढींगरा व वी डी सावरकर इसके प्रमुख सदस्यों में से थे।
◆ मदनलाल ढींगरा ने 1 जुलाई 1909 को भारत सचिव के सलाहकार कर्जन वाइली की हत्या की। जिस कारण ढींगरा को फांसी सुनाई गई। तथा इसी के पश्चात वी डी सावरकर को नासिक षड्यंत्र केस के तहत गिरफ्तार कर काला पानी की सजा दी गई।
◆ पेरिस में मैडम भिखाजी रुस्तम कामा ने क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया। उन्होंने 1902 में भारत छोड़कर पेरिस में इंडियन सोसायटी की स्थापना की जिसके माध्यम से भारतीय क्रांतिकारियों को सहायता प्रदान की जाती थी। इसी कारण मैडम भीखाजी कामा भारतीय क्रांति की माता कहलाती है। (Indian National Movement 1885 – 1917)
◆ 1907 ई. में स्टुगार्ट जर्मनी में सामाजिक कांग्रेस के होने वाले द्वितीय सम्मेलन में मैडम कामा ने भाग लिया था इसी दौरान इनके द्वारा सर्वप्रथम तिरंगा लहराया गया।
◆ अमेरिका में 1907 में सैन फ्रांसिस्को में रामनाथपुरी के द्वारा हिंदुस्तान एसोसिएशन की स्थापना की गई तथा सर्कुलर-ए-आजादी नामक समाचार पत्र निकाला गया। कैलिफोर्निया में तारानाथ दास द्वारा 1907 ई. में भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की गई।
◆ 1913 ई. में सोहन सिंह भाकना द्वारा काशीनाथ, भाई परमानंद, हरनाथ सिंह के सहयोग से हिंदुस्तान एसोसिएशन ऑफ अमेरिका की स्थापना की गई, जिसके द्वारा ग़दर नामक समाचार पत्र निकाला गया, जिसके नाम पर ही यह संगठन गदर आंदोलन कहलाया परंतु यह संगठन पंजाब में प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सका।

कामागाटामारू का प्रकरण (1914)

◆ कनाडा सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से कनाडा आने वाले भारतीयों पर रोक लगा दी गई। कनाडा के सर्वोच्च न्यायालय ने 1913 ई. में 35 भारतीयों को कनाडा में प्रवेश की अनुमति दी इससे प्रोत्साहित होकर गुरुदीप सिंह कामागाटामारू जहाज को किराए पर लेकर 376 यात्रियों के साथ कनाडा गया परंतु सरकार द्वारा इन्हें जहाज से उतरने नहीं दिया गया।
◆ यात्रियों के समर्थन में अमेरिका में गदर पार्टी के सदस्यों द्वारा आंदोलन भी चलाया गया तथा रहीम हमीम, सोहन पाठक, बलवंत सिंह, भगवान राम ने शोर कमेठी की स्थापना की। (Indian National Movement 1885 – 1917)
◆ भारत सरकार द्वारा इस जहाज को वापस बुला लिया गया, जो सितंबर 1914 में कोलकाता पहुंचा। यहां पुलिस व यात्रियों के मध्य हुई मुठभेड़ में 18 यात्री मारे गये व 200 से अधिक बंदी बना लिए गए।

लखनऊ पैक्ट (1916 ई.)

◆ बाल गंगाधर तिलक के प्रयासों से 1916 ई. में हुए कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में उग्रवादी व उदारवादी एक हुए। इस अधिवेशन की अध्यक्षता अंबिकाचरण मजूमदर द्वारा की गई।
◆ इसी अधिवेशन में मुस्लिम लीग और कांग्रेस के मध्य समझौता हुआ तथा कांग्रेस ने मुस्लिमों को दिए गए पृथक निर्वाचन को स्वीकार किया जिसका विरोध पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया था।
◆ लीग ने स्वराज तथा राष्ट्रवाद को कांग्रेस के साथ अपना लक्ष्य बनाया। यह समझौता लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है।

होमरूल लीग – 1916 ई.

◆ 1914 ई. में तिलक माण्डले जेल से रिहा हुये। 1915 में इन्होंने जोसेफ बेपटिस्टा के प्रभाव में राजनीति में पुनः कदम रखा।
◆ राष्ट्रवादिता के प्रचार, स्वशासन की मांग, मातृभाषा में शिक्षा व्यवस्था की मांग, भाषायी आधार पर प्रान्तों का गठन आदि मांगों को लेकर तिलक ने एनिबिसेन्ट के साथ होमरूल लीग की स्थापना की।
◆ तिलक ने अपने होमरूल लीग की स्थापना 28 अप्रैल 1916 को बेलगांव में की, जिसके अध्यक्ष जोसेफ बेपटिस्टा व सचिव NC केलकर बने।
◆ तिलक के होमरूल में कर्नाटक, महाराष्ट्र (बम्बई के अलावा मध्य प्रान्त, बरार के क्षेत्र शामिल थे।)
◆ एनिबिसेन्ट द्वारा अपने होमरूल लीग की स्थापना मद्रास में की गई। जिसके सचिव जॉर्ज आरुण्डले बने। एनिबिसेन्ट के होमरूल लीग में सम्पूर्ण भारत का क्षेत्र शामिल था। इसकी सर्वाधिक शाखायें मद्रास में स्थापित हुई, परन्तु सर्वाधिक सक्रिय शाखाएं गुजरात में थी।
◆ एनिबिसेन्ट के प्रमुख सहयोगी – बी.पी. वाडिया व CP रामास्वामी थे।
◆ सम्पूर्ण भारत में इस संगठन ने ख्याति प्राप्त की तथा कई राष्ट्रवादी नेता इसके सदस्य बने।
◆ 1916 ई. में सरकार द्वारा तिलक पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। जिन्ना के नेतृत्व में वकीलों ने इस केस में विजय प्राप्त की।
◆ जून 1917 ई. में सरकार द्वारा एनिबिसेन्ट व उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसका सम्पूर्ण भारत में विरोध हुआ। इसी के विरोध में एस. सुब्रमण्यम के द्वारा अपनी नाईट हुड की उपाधि त्याग दी गई। अन्ततः सरकार को सितम्बर 1917 में एनिबिसेन्ट को रिहा किया गया।
◆ राष्ट्रवादियों को प्रसन्न करने हेतु 1917 में मांटेग्यू द्वारा सुधार की घोषणाएं की गई।
◆ इसके पश्चात एनिबिसेन्ट ने आन्दोलन में सक्रियता नहीं दिखाई तथा तिलक वेलेन्टाइन शिरोल पर मानहानि का केस करने के लिए लन्दन चले गए। अन्ततः नेतृत्व के अभाव में यह आन्दोलन समाप्त हो गया।

History Topic Wise Notes
Indian National Movement 1885 – 1917

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