किशनगढ़ का राठौड़ वंश | Kishangarh ka Rathore Vansh: राजस्थान के इतिहास की इस पोस्ट में किशनगढ़ के राठौड़ राजवंश के नोट्स एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी परीक्षाओं के लिए बेहद ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, किशनगढ़ का इतिहास,
● मारवाड़ रियासत में जोधपुर, बीकानेर, नागौर, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर आदि जिले आते हैं।
● राजस्थान में राठौड़ों की मुख्यतः तीन रियासतें थी। –
1.मारवाड़ (जोधपुर) – स्थापना 1459 में, संस्थापक – राव सीहा
2.बीकानेर – स्थापना 1488 में, संस्वसंस्थापक – राव बीका
3.किशनगढ़ – स्थापना 1609 में, संस्थापक – किशन सिंह
उत्पत्ति :-
● राठौड़ शब्द की व्युत्पत्ति राष्ट्रकूट शब्द से मानी जाती है।
● पृथ्वीराजरासो, नैणसी, दयालदास और कर्नल जेम्स टॉड राठौड़ों को कन्नौज के जयचंद गढ़वाल का वंशज मानते हैं।
● डॉ. ओझा ने मारवाड़ के राठौड़ों को बदायूं के राठौड़ों का वंशज माना है।
● किशनगढ़ राजस्थान में राठौड़ों की तीसरी रियासत थी।
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किशनगढ़ का राठौड़ वंश | Kishangarh ka Rathore Vansh
किशन सिंह (1609 – 1615)
● जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह के पुत्र किशन सिंह ने 1609 ई. में किशनगढ़ राज्य की स्थापना की।
● मुगल शासक जहांगीर ने इन्हें महाराजा की उपाधि प्रदान की
● किशन सिंह की छतरी अजमेर में घूघरा घाटी में स्थित है
सावंतसिंह (1706 – 1748)
● राज सिंह के पुत्र सावंतसिंह ने इश्कचमन, मनोरथ मंजरी, ‘नागरसमुच्चय, रसिक रत्नावली, विहार चंद्रिका सहित 70 ग्रंथों की रचना की थी।
● सावंत सिंह का समय किशनगढ़ चित्रकला का चरमोत्कर्ष माना जाता है। इस शैली का प्रसिद्ध चित्रकार निहालचंद (मोरध्वज) था जिसने बणी-ठणी चित्र बनाया।
● जर्मन विद्वान एरिक डिक्सन ने ‘बणी-ठणी’ को भारत की मोनालिसा कहा है।
● भक्त नागरीदास के नाम से प्रसिद्ध सावंत सिंह कृष्ण भक्ति में राजपाट अपने पुत्र सरदार सिंह को सौंप कर वृंदावन चले गए थे।
● इनके काल को किशनगढ़ चित्रशैली के विकास का स्वर्णकाल कहा जाता है
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महाराजा कल्याण सिंह
● कल्याण सिंह में 1817 में अंग्रेजों के साथ सहायक संधि की
● कल्याण सिंह अपने पुत्र मौखम सिंह को राजकार्य सौंप कर स्वयं मुगल बादशाह की सेवा में दिल्ली चले गए
महाराजा सुमेर सिंह
● सुमेरसिंह 1939 में किशनगढ़ के शासक बने
● 25 मार्च 1948 को द्वितीय चरण में किशनगढ़ का विलय राजस्थान संघ में कर् दिया गया
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