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कक्षा-कक्षा की प्रक्रियाएँ, क्रियाकलाप एवं विमर्श (Social Studies Pedagogy, Teaching Method)

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सामाजिक अध्ययन शिक्षण विधियाँ (Social Studies Pedagogy, Teaching Method) –

  • शिक्षण विधि, शिक्षण का एक साधन है, जिसके द्वारा शिक्षक अपने शिक्षण को अधिगम की दृष्टि से अधिक रोचक व प्रभावशाली बनाता हैं।
  • माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53) के अनुसार ‘‘शिक्षण विधि चाहे वह अच्छी हो या बुरी, शिक्षण तथा छात्रों में अव्यवी ढ़ंग से घन्ष्ठिता स्थापित करती है।’’

अच्छी शिक्षण विधि की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching Method) –

  1. वहीं पद्धति उतम है जो छात्रों में सीखने के लिए प्रेरणा जाग्रत करती है।
  2. उत्तम पद्धति में स्पष्टता व निश्चितता होती है।
  3. अच्छी पद्धति स्थानीय अवश्यकताओं के अनुकूल होती है।
  4. अच्छी पद्धति छात्रों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करती है।
  5. अच्छी पद्धति सीखने की प्रकृति तथा शिक्षा दर्शन से संबंधित होती है।
  6. अच्छी पद्धति में निम्नांकित सात तत्व होते है-
    (1) प्रदर्शन (2) बातचीत करना (3) चित्र (4) भाग (5) लेखन (6) पाठन (7) निर्देशन

1 समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method) –

जब एक शिक्षक किसी बालक के सामने किसी समस्या को प्रस्तुत कर देता है और बालक को ही अपने स्तर पर उस समस्या का समाधान खोजना होता है तो बालक को ऐसी स्थिति में चिन्तन करते हुए समाधान का प्रयास करना होता है। सामान्यतया सामाजिक अध्ययन में कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ समस्या समाधान विधि का उपयोग सम्भव है परन्तु सामान्य विद्यालय वातावरण में ग्रह कार्य प्रदान करना समस्या समाधान विधि का उपयोग होता है।

समस्या समाधान विधि के सोपान –

  1. समस्या का चयन करना – इसमें शिक्षक सामाजिक विज्ञान विषय के उन प्रकरणों का चयन करता है जो समस्या समाधान विधि से पढ़ाये जा सकते है।
  2. समस्या का प्रस्तुतीकरण करना – इसमें अध्यापक समस्या के महत्व को विद्यार्थियों के समक्ष स्पष्ट कर उनमें रूचि पैदा करता है।
  3. परिकल्पनाओं एवं उपकल्पनाओं का निर्माण करना – इसमें छात्र समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए परिकल्पनाओं एवं उपकल्पनाओं का निर्माण्ण करता है।
  4. समस्या से संबंधित तथ्यों का एकत्रीकरण करना – इसमें तथ्यों की जांच कर उनका एकीकरण किया जाता है तथा उनका उपयोग समस्या के हल ढूंढ़ने में किया जाता है।
  5. विश्लेषण करना – इसमें प्राप्त तथ्यों का सामान्यीकरण अर्थात् विश्लेषण किया जाता है और एक निष्कर्ष की प्राप्ति की जाती है।
  6. निष्कर्षो का मूल्यांकन – इसमें जिस निष्कर्ष पर विद्यार्थी व शिक्षक पहुंचते है उसका मूल्यांकन किया जाता है। (Social Studies Pedagogy Teaching Method)

सामाजिक विज्ञान के शिक्षक को इस विधि का उपयोग समय – समय पर करते रहना चाहिए क्योंकि इसका उपयोग होने से बालकों में चिन्तन के साथ ही तर्कणा का विकास होता है जो समालोचनात्मक चिन्तन का आधार है।

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of the Problem Solving Method) –

  1. बालक में समस्या समाधान के गुणों का विकास करती है।
  2. बालक में स्वाध्याय की आदत का निर्माण होता है।
  3. बालकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।
  4. इससे अर्जित ज्ञान स्थायी रहता है।
  5. इससे बालकों की बौद्धिक क्षमता का विकास होता है।
  6. चिन्तन व तर्क का विकास करती है।
  7. बालकों में आत्मविश्वास पैदा करती है।

समस्या समाधान विधि के दोष (Problem Resolution Method Faults) –

  1. समय अधिक खर्च होता है।
  2. इससे शैक्षिक वातावरण में निरसता आ जाती है।
  3. इस विधि के प्रयोग के लिए कुशल, योग्य व अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता होती है।
  4. मंद बुद्धि व कमजोर बालकों के लिए उपयोग नहीं।
  5. प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं।
  6. नकल के दोष पैदा होते हैं।

2 अभिनय विधि (Acting method) –

इसमें बालकों को किसी विशेष प्रकार के नाटक के मंचन का अवसर प्रदान किया जाता है और उस नाटक में अपने पाठ्यक्रम से संबंधित किसी बिन्दु की कहानी पर विद्यार्थियों को अलग-अलग पात्र के अनुसार भूमिका देते हुए जब उन्हीं के माध्यम से अभिनय करवाया जाता है तो बालकों में भूमिका निर्वहन का गुण विकसित होता है। विशेषकर किसी महान शासक की जीवनी या स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं पर ऐसे नाटक तैयार किये जाते है।

अभिनय (नाटक) के तत्व (Elements of Abhinaya / Drama) –

भारतीय प्राचीन आचार्यो ने नाटक के तीन तत्व माने है –

  1. वस्तु 2. नायक 3. रस
  1. कथा वस्तु 2. पात्र 3. कथोपकथन 4. उद्देश्य 5. शैली 6. देशकाल

अभिनय विधि के सोपान (Step of Acting Method) –

  1. कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करना
  2. किस छात्र को किस पात्र की भूमिका अदा करनी है, का चयन करना।
  3. छात्र के संवाद (विषय वस्तु) क चयन करना।
  4. मूल्यांकन प्रविधियों का चयन करना
  5. कार्य को योजनानुसार क्रियान्वित करना
  6. कार्य की समीक्षा करना तथा पृष्ठ पोषण प्रदान करना।

अभिनय विधि के लाभ (Benefits of Acting Method) –

  1. इस विधि से स्मरण शक्ति का विकास होता है।
  2. इससे बालकों में परस्पर सहयोग, उतरदायित्व, अनुशासन आदि गुणों का विकास होता है।
  3. इससे विचार, अभिव्यक्ति व आत्मविश्वास का विकास होता है।
  4. इस विधि से भाषा का विकास होता है।
  5. इससे भावात्मक स्तर के उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।

अभिनय विधि की सीमाएँ (Limitations of Acting Method) –

  1. शैक्षिक नाटकों की कमी
  2. समय की अधिकता
  3. धन का अधिक खर्च होना
  4. अभिनयात्मक गुणों का अभाव
  5. अभिनयकला के ज्ञान का अभाव

3. मस्तिष्क उत्प्लवन विधि (Brain Atrophy Method) –

  • मस्तिष्क उत्प्लवन से अभिप्राय मस्तिष्क को इस प्रकार से काम में लेना होता है कि व्यक्ति या बालक आन्तरिक भावों से प्रेरित होकर किसी नव निर्माण के लिए सृजनशीलता के गुणों की ओर विकसित हो सके।
  • सबसे पहले इसका विचार अमेरिकी विद्वान ऐलेक्स आसबर्न ने दिया था जो एक विज्ञापन कम्पनी में विज्ञापन बनाने का कार्य करते थे। इनके अनुसार बालकों को इस प्रकार के अवसर प्रदान करने चाहिए कि वे स्वतंत्र रूप से चिन्तन और तर्क करते हुए कोई नया निर्माण या मौलिक रचना कर सके।
  • एक विद्यालय वातावरण में मस्तिष्क उत्प्लवन के लिए वाद-विवाद, विचार-विमर्श, खेल-कूद जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
  • मस्तिष्क उत्प्लवन के सोपान – विल्सन ने आठ सोपान बताये है।
  1. अध्यापक छात्रों को मस्तिष्क उत्प्लवन के चरणों की जानकारी व सामान्य निर्देश देता है जैसे – सक्रिय सहभागीता, आलोचना, विचार अभिव्यक्ति, तारतम्यता।
  2. हिमभंजक – प्रचलित विचार को खण्डित करते हुए नए विचार उत्पन्न करें।
  3. मस्तिष्क उत्प्लवन सत्र के विषय को परिभाषित करना।
  4. विद्यार्थियों से समस्या के समाधान के बारे में पूछना।
  5. एक समाधान का चयन करना।
  6. चयन किये गये समाधान पर विद्यार्थियों से विचार प्राप्त करना।
  7. मुख्यतम सुझाव की घोषणा करना।
  8. मूल्यांकन

मूल्यांकन उत्प्लवन के लाभ (Benefits of Evaluation) –

  1. सृजनात्मकता को प्रोत्साहित किया जाता है।
  2. अधिक तैयारी की आवश्यकता नहीं होती हैं
  3. पूर्णतः नवीन विचारों एवं सुझावों का उत्पन्न किया जाता है।
  4. प्रशिक्षणार्थी को किसी विषय के बारे में चिन्तन रखने के लिए सहायता करती है।

मस्तिष्क उत्प्लवन से हानियाँ (Disadvantages of Brain Atrophy) –

  1. यह किसी विषय के अध्ययन की सुव्यवस्थित विधि नहीं हैं।
  2. परिणाम की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
  3. मूल्यांकन कठिन एवं अधिक समय खर्च होता है।
  4. प्रतिभागी सहभागीताा करने के प्रति उदासीन होते हैं।

4 पर्यटन विधि (Tourist Law) –

  • पर्यटन से अभिप्राय विद्यालय चार-दीवारी से बाहर बालकों को किसी विशेष धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, जैव विविधता वाले स्थान पर भ्रमण के लिए ले जाना होता है पहली बार इसका विचार प्रोफेसर रेने के द्वारा दिया गया।
  • पर्यटन या भ्रमण से बालक को प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर प्राप्त होता है और स्थाई ज्ञान प्राप्त होता है।
  • स्ट्रक के अनुसार – शैक्षिक पर्यटन विद्याल की चार दीवारी से बाहर शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सुनियोजित भ्रमण है जिसमें बालक मंनोरंजन के साथ वास्तविक शैक्षिक अनुभव प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करता है। (Social Studies Pedagogy Teaching Method)

शैक्षिक भ्रमण के उद्देश्य (Objectives of Educational Tour) –

  • शैक्षिक उद्देश्य (Educational Purposes) –
  1. वस्तु एवं प्रक्रिया को प्रत्यक्ष देखने का अवसर
  2. नवीन अनुभवों की प्राप्ति
  3. प्राप्त ज्ञान अधिक स्थाई के निरीक्षण का अवसर
  4. विषय के प्रति रूचि
  5. निरीक्षण शक्ति का विकास
  6. विषय का स्पष्टीकरण
  7. उपयोगी सामग्री का संग्रह
  8. कई विषयों का एक साथ शिक्षण

सामाजिक उद्देश्य (Social Purpose) –

  1. सामाजिक व सहयोग की भावना का विकास
  2. मनोंरंजन का साधन
  3. मूल्यों का विकास
  4. समुदाय से सम्बन्ध

मनोवैज्ञानिक उद्देश्य (Psychological Purpose) –

  1. सामान्य बुद्धि का विकास
  2. कल्पना शक्ति
  3. मौलिकता
  4. तर्क का आधार
  5. चिन्तन का आधार
  6. संवेगों का अभिप्रेरण

पर्यटन विधि के लाभ/उपयोगिता (Benefits / Utility of Tourism Law) –

  1. प्रत्यक्ष अनुभव से ज्ञान का स्थाई होना।
  2. बालक में पर्यटन की समझ का विकास।
  3. सहयोग एवं सहकारिता के भावों का विकास।
  4. बालक में विभिन्न परिस्थितियों का विकास।
  5. एक प्रकार का रूचिकर शिक्षण माध्यम।

पर्यटन विधि के दोष (Defects of tourism law) –

  1. धन व समय का व्यापक दुरूपयोग
  2. दुर्घटना होने का भय
  3. अनुशासनहीनता पैदा होती है
  4. सभी बिन्दुओं के लिए उपयोगी नहीं

5 प्रायोजना विधि (Planning Method) –

  • प्रायोजना का अभिप्राय है – योजना बनाकर कार्य करना।
  • सर्वप्रथम इसका विचार अमेरिकी दर्शनशास्त्री जाॅन ड्यूवी ने दिया।
  • इस विधि को शिक्षा में स्थापित करने का श्रेय किलपैट्रिक को जाता है। जिन्होंने 1918 में इसे शिक्षा में स्थापित किया।
  • प्रायोजना एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा विद्यालय वातावरण में कोई पाठ नहीं पढ़ाया जा सकता फिर भी यह एक सम्मानजनक स्थिति है।
  • एक विद्यालय वातावरण में प्रायोजना का उपयोग करते हुए बचत बैंक की स्थापना, बगीचा, बाल मेले का आयोजन आदि कार्य किये जा सकते हैं।
  • किलपैट्रिक के अनुसार – ‘‘प्रायोजना एक उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण सामाजिक वातावरण में सम्पन्न होता है।’’
  • पार्कर के अनुसार – ‘‘प्रायोजना कार्य की एक इकाई है जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।’’
  • स्टीवेन्सन के अनुसार – ‘‘प्रायोजना एक समस्यामूलक कार्य है जिसका समाधान उसके प्राकृतिक वातावरण में रहते हुए ही किया जाता है।’’

प्रायोजना विधि के सोपान – 06 सोपान

  1. वातावरण/परिस्थिति का निर्माण
  2. योजना का चयन
  3. योजना का कार्यक्रम बनाना
  4. योजना का क्रियान्वयन करना
  5. कार्य का मूल्यांकन करना
  6. योजना का लेखा-जोखा लिखना।

प्रायोजना विधि के गुण (Properties of the Project Method) –

  1. मनोवैज्ञानिक विधि है
  2. सहयोग की भावना का विकास होता है
  3. सहकारिता का भाव (मिलजुलकर काम करना करना)
  4. स्थायी ज्ञान
  5. करके सीखने के सिद्धान्त पर आधारित
  6. दल शिक्षण पर आधारित है
  7. नेतृत्व क्षमता का विकास करती है

प्रायोजना विधि के दोष (Defects of Planning Method) –

  1. धन व समय अधिक लगता है।
  2. प्रारम्भिक कक्षाओं व कमजोर बालकों के लिए उपयोगी नहीं।
  3. इसके द्वारा प्रत्येक पाठ को नहीं पढ़ाया जा सकता।
  4. योग्य शिक्षकों का अभाव।
  5. इस विधि के द्वारा समय पर पाठ्यक्रम को पूर्ण नहीं करवाया जा सकता है।

6 समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि/समाजमिति विधि (Socialized Expression Method / Sociometry Method) –

  • जब बालकों में सामाजिक सामूहिकता के भावों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है तो वहाँ पर समाजमिति विधि का उपयोग होता है। समाजमिति से अभिप्राय उन गतिविधियों से है जो एक एक समूह की भावना से सम्पन्न होती है।
  • बाइनिंग एवं बाइनिंग के अनुसार-‘‘समाजीकृत अध्ययन पद्धति एक ऐसी पद्धति है जिसमें अध्यापक अपने कालांश को कक्षा या छात्रों द्वारा चुनी गई समिति को सौंप कर स्वयं को कक्षा कार्य से पूर्णतया पृथक कर लेता है।’’

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के उद्देश्य (Objectives of Socialized Expression Method) –

  1. बालकों में सामाजिक गुणों का विकास करना
  2. बालकों में निर्णय लेने की क्षमता पैदा करना
  3. अलग-अलग बालकों के विचारों को सार्वजनिक उपयोग के लिए तैयार करना।
  4. बालकों में नेतृत्व क्षमता का विकास करना।
  5. किसी विशेष परिस्थिति के लिए बालक को अनुकूलिक बनाना।
  6. अध्यापक व विद्यार्थियों के मध्य सामाजिक दूरी को कम करना।

इस विधि में निम्न प्रकार की गतिविधियाँ अपनाइ जाती है –

  1. पैनल चर्चा – जब किसी एक ही उद्देश्य की पूर्ति के समूह के लोगों मे से कुछ लोगों का पैनल बना देते है और उन्हें किसी निर्णय तक पहुंचना होता है तो यह पैनल चर्चा कहलाती है।
  2. सेमीनार (कार्यशाला) – जब समूह के लोगों को किसी एक ही विषय पर एक साथ जानकारी देने के लिए कोई विशेषज्ञ उपस्थित होता है और वह अपने विचार अभिव्यक्त करता है तो यह गतिविधि सेमिनार कहलाती है।
  3. संगोष्ठी – जब भिन्न-भिन्न जानकारी वाले व्यक्ति या बालक किसी कार्यशाला में अपने-अपने विचार अभिव्यक्त करते है और बाकी सभी लोग उन विचारों को समझने का प्रयास करते है तो कार्यशाला के ऐसे स्वरूप को संगोष्ठी नाम दिया जाता है।
  4. गोलमेज सम्मेलन – एक बड़ी गोलमेज के चारों ओर बालकों को बैठा दिया जाता है और फिर किसी विशेष मुद्दे पर चर्चा करते हुए किसी निष्कर्ष को प्राप्त करना होता है। इस प्रकार की गतिविधि को गोलमेज सम्मेलन कहते हैं।

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के गुण (Properties of Socialized Expression Method) –

  1. मनोवैज्ञानिक विधि है।
  2. इसमें छात्रों की रूचियों तथा प्रवृत्तियों के अनुसार शिक्षा दी जाती है।
  3. बाल केन्द्रित विधि
  4. सामुहिक भावना व सामाजिक उत्तरदायत्वि की भावना का विकास होता है।
  5. इससे विद्यार्थियों में दूसरे के विचारों का सम्मान करना, परस्पर सहयोग करना, उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  6. इससे विषय में पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के दोष (Defects of Socialized Expression Method) –

  1. समय की दृष्टि से व्यय पूर्ण
  2. इसमें विषय से भटकने का भय बना रहता है।
  3. शर्मीले व मंद बुद्धि बालकों के लिए कम उपयोगी।

7 व्याख्यान विधि/भाषण विधि (Lecture Method) –

  • सबसे पहले यूनानी दार्शनिक प्लेटों ने इस विधि का उपयोग किया था।
  • यह प्राचीन विधि है।
  • जनक – प्लेटो (ई.पू. 9वीं – 4वीं सदी)
  • इस विधि में शिक्षक सबसे पहले लिखित में व्याख्यान तैयार करता है और उस लिखित व्याख्यान को कक्षा-कक्ष में अपने साथ रखते हुए सर्वप्रथम उसके मुल बिन्दुओं को श्यामपट्ट पर अंकित करता है तथा एक-एक बिन्दु पर अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए बालकों को समझाने का प्रयास करता है। व्याख्यान के दौरान सभी बालक बिना सवाल-जवाब किये शिक्षक की बातों को ध्यानपूर्वक सुनते हुए समझने का प्रयास करते है। इस प्रकार से व्याख्यान पुरा होता है।

व्याख्यान विधि के गुण व दोष –

गुणदोष
1. समय व धन कम खर्च होता है1. योग्य शिक्षकों का अभाव
2. पाठ्यक्रम समय पर पुरा हो जाता है2. अमनोवैज्ञानिक विधि
3. बालकों में अच्छे स्त्रोता के गुणों का विकास व ध्यान केन्द्रण3. बालक निष्क्रिय स्त्रोता बन जाता है
4. नेतृत्व के गुणों का विकास4. जिज्ञासा शांत नहीं हो पाती है।
5. अनुशासन व निमंत्रण का विकास
Social Studies Pedagogy Teaching Method

8 पाठ्यपुस्तक विधि (Textbook Method) –

  • शुरूआत – सुकरात (ई.पू. 5वीं सदी)
  • यह एक परम्परागत विधि है।
  • इस परम्परागत विधि का उपयोग करते समय शिक्षक सबसे पहले एक-एक बालक को खड़ा करते हुए पाठ का कुछ अंश पढ़वाता है और फिर क्रमशः एक-एक बालक से पढवाते हुए स्वयं बीच-बीच में समझाता रहता है। अगले बालक को खड़ा करते समय अब तू पढ़ शब्दों का उपयोग करता है इसलिए इसे तू पढ़ विधि भी कहते है।

पाठ्यपुस्तक विधि के गुण –

  1. पाठ्यक्रम समय पर पूरा
  2. सहकार्य में मदद
  3. उच्चारण का विकास
  4. याद करने में सुविधा
  5. आत्मविश्वास में वृद्धि

पाठ्यपुस्तक विधि के दोष –

  1. नकल का दोष
  2. रटन्त का दोष
  3. बालकों में विशेषकर कमजोर बालकों में असहजता।

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