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भारत का स्वतंत्रता संघर्ष | Freedom Struggle of India

भारत का स्वतंत्रता संघर्ष | Freedom Struggle of India: भारतीय इतिहास की इस पोस्ट में भारत के स्वतंत्रता संघर्ष से संबंधित नोट्स एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी परीक्षाओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है Bharat ka Swantra Sangharsh, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, Indian freedom struggle,

भारत का स्वतंत्रता संघर्ष | Freedom Struggle of India

19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीतियों और भारत के आर्थिक शोषण के विरुद्ध विक्षोभ होना प्रारम्भ हुआ 1857 का विद्रोह इस क्षोभ का प्रथम प्रयास था, फलतः राष्टीय चेतना एवं स्वतंत्रता प्राप्ति की लालसा लोगों में जागृत हुई इस लालसा की तृप्ति 15 अगस्त 1947 को हुई जब देश ब्रिटिश गुलामी से मुक्त हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति का यह संघर्ष विभिन्न अवस्थाओं से गुजरा एवं अनेक देश भक्तों ने अपने प्राणों की उत्सर्ग किया । (Freedom Struggle of India)

भारतीय राष्ट्रीयता का जन्म

स्वतंत्रता संघर्ष की विभिन्न अवस्थाओं का विवेचन करने से हमें यह जानना आवश्यक है की देशवासियों को राष्ट्रीयता की भावना का उदय कैसे हुआ, भारतीयों में राष्ट्रीयता के उदय के प्रमुख उत्तरदायी तत्व है ।

भारतीय राष्ट्रीयता के उदय के तत्व

1. सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आन्दोलन

◆ 19वीं शताब्दी के सामाजिक धार्मिक सुधार आन्दोलन आर्थिक होते हुए भी राष्ट्रीयता भावना से ओतप्रोत थे उन्होंने प्राचीन भारतीय सभ्यता व संस्कृति के प्रति पुनः श्रद्धा उत्पन्न करने के साथ ही साथ भारतीयों में एक नया साहस व विश्वास भर दिया जिसके सहारे वे बाद में विदेशियों का सामना करने को उद्दत हो सके इनमें राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद प्रमुख थे ।
◆ स्वामी दयानंद सरस्वती ने यह उद्घोषणा कर दि की “भारत भारतीयों के लिए है” स्वामी विवेकानंद ने कहा की “हमारे देश को आज ऐसे महापुरुषों की आवश्यकता है जिनका शरीर लोहे का बना हो जिनकी इच्छा शक्ति इतनी बलवती हो कि जिनका प्रतिरोध ही न किया जा सके ।
◆ श्रीमती एनीबिसेन्ट ने कहा कि “स्वतंत्र व्यक्ति ही स्वतंत्र देश का निर्माण कर सकता है” इस प्रकार महान विभूतियों से राष्ट्रीय विचारों को बड़ा प्रोत्साहन मिला ।

2. समाचार पत्र तथा साहित्य का प्रभाव

◆ प्रेस व समाचार पत्रों ने देश में राष्ट्रीयता भावना को जागृत किया 1870 ई. में ब्रिटिश भारत में लगभग 650 समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे। इनमें अधिकतर समाचार पत्र देशी भाषा में प्रकाशित होते थे, भारतीय हाथों ने प्रेस की शक्ति का एक नया रूप धारण कर लिया समाचार पत्र राजनीतिक शिक्षा देने तथा राष्ट्रीयता को जागृत करने का कार्य किया। (Freedom Struggle of India)
◆ प्रमुख समाचार पत्र – दि इंडियन मिरर, बंगाली, पुब्लिकक ओपिनियन, सोम प्रकाश, बंबई समाचार, इन्द्र प्रकाश, ज्ञान प्रकाश, मराठा, केसरी, दि हिन्दु, स्वदेशी मित्र।
◆ साहित्यकारों ने भी राजनीतिक चेतना का कार्य किया बकीमचंद्र के आनन्द मठ में वन्दे मातरम का उल्लेख मिलता है, स्वामी दयानंद सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश का भी प्रमुख योगदान रहा ।

3. अंग्रेजी शिक्षा एवं विदेशी घटनाओं का प्रभाव

◆ अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार अपने स्वार्थों के वशीभूत होकर ही किया था किन्तु 19 वीं शताब्दी में पाश्चात्य विचारधारा और अंग्रेजी शिक्षा के विकास ने भारतीयों की मानसिक जड़ता समाप्त कर उन्हें आधुनिक तर्कसंगत, विवेकपूर्ण, राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने का अवसर प्रदान किया भारतीय अब स्वतंत्रता, समानता, प्रतिनिधत्व जैसे सिद्धांतों को समझने लगे ।
◆ विदेशों की प्रमुख घटनाएं जैसे – अमेरिका स्वतंत्र संग्राम (1776), फ्रांस की महान क्रांति (1789), इटली, स्पेन, यूनान आदि क्रांतियों ने भी भारतीयों में राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत किया था ।

4. प्रजातीय विभेद की नीति

◆ अंग्रेजों की प्रजातीय विभेद की नीति में जलती अग्नि में घी का काम् कर इसे प्रज्वलित कर दिया अंग्रेज अपने-आपको सबसे श्रेष्ठ समझते थे, वे भारतीयों को अपमान व घृणा की दृष्टि से देखते थे उन्हें काला व देशी कहकर पुकारते थे ।
◆ अंग्रेजों ने भारतीयों पर अनेक प्रतिबंध लगाए, भारतीय रेल के प्रथम श्रेणी में या उस डिब्बे में नहीं जा सकते जहां पर अंग्रेज बैठे थे युरोपियन क्लबों में भी भारतीय नहीं जा सकते अंग्रेजों के मुकदमों की सुनवाई भी भारतीय जज नहीं कर सकते। इस विभेद की नीति में भारतीय प्रभावित हुए जिनसे भारतीयों में एकता, राष्ट्रीयता और अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा की भावना उत्पन्न हुई ।

5. राजनीतिक संस्थाओं का योगदान

सामाजिक – धार्मिक संस्थाओं की तरह 19 वीं शताब्दी में कुछ राजनीतिक संगठन भी बने जिनमें लैडहोल्डर्स सोसायटी, ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन, मद्रास नेटिव एसोसिएशन, बम्बई एसोसिएशन इत्यादि प्रमुख थे ये सभी राजनीतिक संगठन भारतीयों में राष्ट्रीय भावना को जागृत किया था ।

6. लार्ड लिटन का शासन

◆ लार्ड लिटन के समय भारत में दुर्भिक्ष व महामारी का प्रकोप अधिक था इसी बीच लार्ड लिटन ने दिल्ली में दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित किया उनको केसरी-ए-हिन्द की उपाधि से नवाजा गया ।
◆ लार्ड लिटन ने 1878 में वर्नाकूलम प्रेस ऐक्ट पारित किया जिसके तहत भारतीय उन समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाया जो ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध थे इन्होंने ICS परीक्षा की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दि तथा भारतीय सैनिकों के लिए शस्त्र-कानून बनाया गया। उन सभी अधिनियमों से भारतीय में असंतोष बढ़ा।

भारत की प्रमुख राजनीतिक संस्थाएं

1. लैड होल्डर्स सोसायटी

◆ स्थापना – 1838 ई. कलकत्ता में
◆ संस्थापक – द्वारिका नाथ टैगोर
◆ उद्देश्य – जमीदारों के हितों का संरक्षण
◆ यह भारत की प्रथम राजनीतिक संस्था थी जिसमें संगठित राजनीतिक प्रयासों का शुभारंभ किया तथा शिकायतों को दूर करने के लिए सवैधानिक उपचारों का प्रयोग किया जाए ।
◆ लैड होल्डर्स सोसायटी के भारतीय नेताओं में द्वारिका नाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार ठाकुर, राजा काली कृष्ण आदि थे इसमें शामिल अंग्रेज नेताओं में थियोडोर डिफेंस, विलियम काब्री, विलियम थियोवोल्ड एवं जे. ए. प्रिसेप प्रमुख थे ।
◆ लैड होल्डर्स सोसायटी के भारतीय सचिव प्रसन्न कुमार ठाकुर एवं इसके अंग्रेज सचिव विलियम काब्री थे ।

2. बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी

◆ स्थापना – 1843 ई.
◆ संस्थापक – जार्ज थॉमसन
◆ सचिव – प्यारी चन्द्र मित्र
◆ इसका उद्देश्य अंग्रेजी शासन के अधीन भारतीयों विशेषकर कृषकों की वास्तविक दशा का अध्ययन करना उनको सबको अवगत कराना था । यथा संभव उनके सुधार का प्रयत्न करना था ।

3. ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन

◆ स्थापना – 31 अक्टूबर 1851 ई. कलकत्ता में
◆ संस्थापक अध्यक्ष – राधा कांत देव
◆ उपाध्यक्ष – राजा कालीकृष्णा देव
◆ अन्य सदस्य – हरिशचन्द्र मुखर्जी, रामगोपाल घोष, राजेन्द्र लाल मिश्र, देवेन्द्रनाथ टैगोर (सचिव), दिगम्बर मिश्र (उपसचिव)
◆ इसका उद्देश्य जमीदारों के राजनैतिक संरक्षण के साथ जनमानस के हितों की मांग करना था ।
◆ इस संस्था का निर्माण लैण्ड होल्डर्स सोसायटी एवं बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी को किया गया, बंगाल के बाहर इसकी शाखाएं खोली गई थी ।
◆ बंगाल में इसे भारतवर्षी सभा की संज्ञा दि गई । (Freedom Struggle of India)
◆ इस संस्था ने 1860 में अकाल पीड़ितों की सहायता और आयकर बढ़ाने का विरोध किया ।
◆ हिन्दु पैट्रियाट इस संस्था का मुख्य पत्र था ।

4. इंडियन लीग

◆ स्थापना – 1875 कलकत्ता
◆ संस्थापक – शिशिर कुमार घोष
◆ इसका मुख्य उद्देश्य जनमानस में राष्ट्रवाद की अनुप्रेरणा एवं राजनीतिक शिक्षा प्रदान करना था ।
◆ जनसाधारण को न्याय तथा राजनीतिक कार्यों में सहभागिता दिलाना ।
◆ इस संख्या का विलय इंडियन एसोसिएशन में कर दिया गया ।

5. इंडियन नेशनल एसोसिएशन

◆ स्थापना – 26 जुलाई 1876 में कलकत्ता
◆ संस्थापक – सुरेन्द्रनाथ बनर्जी व आजाद मोहन बॉस
◆ इसका मुख्य उद्देश्य हिन्दु व मुसलमानों के मध्य समभाव समरसता की स्थापना करना था ।
◆ इस संगठन ने भारतीय जनपद सेवा, वर्नाकूलम प्रेस एक्ट, आर्म्स ऐक्ट, तथा इलबर्ट बिल का विरोध किया था ।
◆ इस संस्था का सचिव आनन्द मोहन बॉस को बनाया गया इसका अध्यक्ष मनमोहन घोष थे ।

6. बॉम्बे एसोसिएशन

◆ स्थापना – 26 अगस्त 1852
◆ संस्थापक – दादाभाई नौरोजी
◆ उद्देश्य – सरकार को समय-समय पर हानिकारक नियम व सरकारी नीतियों के लिए सुझाव देना ।
◆ दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन के कार्यों से प्रभावित होकर इसकी स्थापना की थी ।
◆ यह बम्बई की प्रथम राजनीतिक संस्था थी ।

7. पुना सार्वजनिक सभा

◆ स्थापना – 2 अप्रैल 1870
◆ संस्थापक – एम. जी. रानाडे, जी. वी. जोशी तथा एस. एच. चिपलूणकर
◆ उद्देश्य – जनता को सरकार की वास्तविकता के बारे में परिचित कराना और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति सचेत करना था ।
◆ यह संस्था जमीदारों तथा व्यापारियों के हितों का प्रतिनिधित्व भी करती थी ।

8. ईस्ट इंडिया एसोसिएशन

◆ स्थापना – 1 दिसम्बर 1866 में लंदन में
◆ संस्थापक – दादा भाई नौरोजी उद्देश्य – भारतीय जनता की समस्याओं पर विचार-विमर्श करना और ब्रिटेन की जनता का मत प्रभावित करना था ताकि ब्रिटिश लोग भारतीय समस्याओं उनके कारणों से परिचित हो सके ।

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भारत का स्वतंत्रता संघर्ष

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