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शैक्षिक प्रबंधन की प्रमुख विशेषताएं –
● शैक्षिक प्रबंधन एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिण है ।
● शैक्षिक प्रबंधन एक निरन्तर चलने वाली सार्वभौमिक प्रक्रिया है , क्योंकि संगठन के प्रत्येक स्तर पर इसकी आवश्यकता पढ़ती है ।
● शैक्षिक प्रबंधन एक जन्मजात प्रतिभा है ।
● शैक्षिक प्रबंधन एक मानवीय एवं सामाजिक प्रक्रिया है ।
● शैक्षिक प्रबंधन कला और विज्ञान दोनों है ।
● शैक्षिक प्रबंधन में विशेषज्ञतापूर्ण ज्ञान का होना आवश्यक है ।
● शैक्षिक प्रबंधन एक अदृश्य कौशल है , क्योंकि कार्य की सफलता और असफलता पर ही इसका दर्शन होता है ।
● शैक्षिक प्रबंधन सामूहिक रूप से मानवीय प्रयास का प्रतिफल है ।
● शैक्षिक प्रबंधन एक समन्वित प्रक्रिया है , क्योंकि इसमें गानवीय एवं भौतिक संसाधनों में तालमेल वैवाने की जाती है ।
● शैक्षिक प्रबंधन सूक्ष्म या अमूर्त होता है ।
● शैक्षिक प्रबंधन उपलब्ध भौतिक संसाधनों के अधिकतम उपयोग पर बल देता है ।
● शैक्षिक प्रबंधन का दायित्व काम करवाना है ।
● शैक्षिक प्रबंधन में समन्वित दृष्टिकोण पाया जाता है ।
● शैक्षिक प्रबंधन एक समन्वयकारी व्यवस्था है ।
● शैक्षिक प्रबंधन सहकारी योगदान पर सफल होता है ।
लोक प्रशासन के महान विचारक लूथर गुलिक ने स्वरचित ‘ पैपर्स ऑन द साइंस ऑबु एडमिनिस्ट्रेशन ( 1937 ई . ) में प्रबंधन के सात कार्यों का निर्धारण किया है , जिसे POSDCORB के नाम से जाना जाता है । यह शब्द अंग्रेजी के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से बनाया गया है । यथा
1 . P – Planning – योजना बनाना
2. O – Organizing – संगठन बनाना
3. S – Staffing – कर्मचारियों की व्यवस्था करना
4. D – Directing – निर्देशन करना
5 . Co – Co – ordinating – समन्वय करना
6 , R – Reporting – सूचना देना
7 . B – Budgeting – बजट बनाना
इन सात शब्दों से निम्नलिखित क्रियाओं का बोध होता है
1 . पी – योजना बनाना :- इसका उद्देश्य कार्यों की रूपरेखा तैयार करना और निश्चित ध्येय की प्राप्ति के लिए रीतियों का निर्धारण करना माना जाता है ।
2 , ओ – संगठन बनाना : इसका उद्देश्य प्रबंधात्मक ढाँचे को इस प्रकार संगठित करना है कि प्रबंधनात्मक कार्यों का विभाजन उचित ढंग से किया जा सके और विभाग या संस्थान में समन्वय किया जा सके ।
3 . एस – कर्मचारियों की व्यवस्था करना : इसके अन्तर्गत स्टाफ अर्थात् सम्पूर्ण कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति , प्रशिक्षण और उनके लिए कार्य करने की अनुकूल दशाओं का निर्माण करना शामिल हैं ।
4 , डी – निर्देशन करना : इसके अन्तर्गत वे निर्णय आते हैं , जो निर्णायकों द्वारा कर्मचारियों के कार्यों के संबंध में लिये जाते हैं । ये निर्णय सामान्य आदेशों के रूप में सन्निहित करके प्रशासकीय कर्मचारियों तक पहुँचाये जाते हैं ।
5 . को – समन्वय करना : इसका उद्देश्य कार्य के विभिन्न भागों को परस्पर संबंधित करना तथा उनमें समन्वय स्थापित करना माना जाता हैं ।
6 . आर – सूचना देना : इसका उद्देश्य वरिष्ठ तथा निम्न कर्मचारियों के कार्यों के संबंध में निरीक्षण अधिकारियों को सूचित रखना एवं निरीक्षण के लिए अभिलेख / प्रतिवेदन तैयार करना है ।
7 . बी – बजट तैयार करना : इसके अन्तर्गत वित्त व्यवस्था का संक्षिप्त अध्ययन या बजट तैयार किया जाता हैं ।
1 . नियोजन का सिद्धान्त – एक कुशल प्रबंधक वही माना जाता है , जो प्रत्येक कार्य एक पूर्व निश्चित योजना के अनुसार करता है , क्योंकि यदि संगठन के कार्य पूर्व नियोजित कर लिये जाते हैं तो इससे विभिन्न इकाइयों में संतुलन स्थापित हो जाता है ।
2 . श्रम विभाजन का सिद्धान्त – प्रबंधक को अपने अधीनस्थों की योग्यता एवं क्षमता के अनुसार कार्यों का विभाजन कर देना चाहिए ताकि उनमें उत्तरदायित्व का निर्धारण किया जा सके ।
3 . संतुलन या समन्वय का सिद्धान्त – प्रबंधक को अपने सभी मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के मध्य संतुलन स्थापित करना चाहिए जिससे संगठन अपने लक्ष्यों को शीघ्र प्राप्त कर सके ।
4 . उत्तरदायित्व एवं अधिकार का सिद्धान्त – प्रबंधक को अपने अधीनस्थ कार्मिकों को समुचित अधिकार सौंपने चाहिए । एवं उनके साथ – साथ उत्तरदायित्व ( जवाबदेही ) भी सौंपनी चाहिए ताकि वे अधिकारों का दुरुपयोग न कर सकें ।
5 . सहभागिता का सिद्धान्त – प्रबंधक को प्रत्येक स्तर पर एवं प्रत्येक कार्य में अधीनस्थ कार्मिकों को सहयोग एवं सुझाव देते रहना चाहिए ताकि उनका मनोबल बढ़ सके ।
6 . नेतृत्व का सिद्धान्त – नेतृत्व के बिना संगठन बिना नाविक की नाव के समान होता है । नेतृत्व कुशलता होने पर ही प्रबंधक अधीनस्थों का सहयोग प्राप्त कर सकता है ।
7 . अपवाद का सिद्धान्त – प्रत्येक प्रबंधक को अपने अधिकारों का उचित सीमा में ही प्रयोग करना चाहिए ।
8 . पारिश्रमिक का सिद्धान्त – प्रबंधक के द्वारा प्रत्येक कार्मिक को न्यायसंगत एवं संतोषजनक पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए ताकि वह पारिवारिक चिंताओं से मुक्त होकर कार्य कर सके ।
9 . आदेश एवं निर्देश की एकता का सिद्धान्त – प्रत्येक अधीनस्थ को उसके एक उच्चाधिकारी से ही आदेश / निर्देश मिलना चाहिए । नोट – एकता के अभाव वाली संस्थाओं को दो सिर वाले राक्षसी शरीर के समान माना जाता है ।
10 . अनसंधान , प्रयोग या शोध का सिद्धान्त – नित्य नवीन विधियों , युक्तियों या तरीकों की खोज करने वाला प्रबंधक ही उच्च कुशलता प्राप्त कर सकता है ।
11 . समानता का सिद्धान्त – प्रबंधक को अपने सभी कार्मिकों के साथ बिना किसी भेदभाव के समानता का व्यवहार करना चाहिए ।
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